*वे मेरे हैं!*
*“और अब तेरे दोनों पुत्र, जो मिस्त्र में मेरे आने से पहिले उत्पन्न हुए हैं, वे मेरे ही ठहरेंगे; अर्थात जिस रीति से रूबेन और शिमोन मेरे हैं उसी रीति से एप्रैम और मनश्शे भी मेरे ठहरेंगे। (उत्पत्ति 48: 5)।*
*जब याकूब वृद्ध हुआ तो उसने यूसुफ के द्वारा जन्मे गए दोनों पुत्रों को अपने पास बुलाकर दोनों को आशीष दी। उन पोतों का जन्म मिस्र में हुआ था, जो गुलामी का देश था। परंतु परमेश्वर ने अब्राहम और उसके वंशजों को इस्राएल की भूमि को देकर उसका उत्तराधिकारी बनाया था।*
*आशीर्वाद देने से पहले , याकूब ने मिस्र में जन्मे पोतों को उनके क्रम से खड़े किया। जो कुछ भी उसके बेटे विरासत में से पाने जा रहे थे, किंतु याकूब अपने पोतों को समानता से विरासत का उत्तराधिकारी बनाना चाहता था। इससे वे उसके स्वयं के पुत्र कहलाने योग्य हुए।*
*परमेश्वर ने आपको मिस्र की गुलामी में रहने वाले पोतों के रूप में देखा था। पौलुस प्रेरित लिखते हैं, “जिनमें तुम पहले इस संसार की रीति पर, और आकाश के अधिकार के हाकिम अर्थात उस आत्मा के अनुसार चलते थे जो अब भी आज्ञा न माननेवालों में कार्य करता है। इन में हम भी सब के सब पहिले अपने शरीर की लालसाओं में दिन बिताते थे, और शरीर, और मन की मनसाएं पूरी करते थे, और और लोगों के समान स्वभाव ही से क्रोध की संतान थे। परंतु परमेश्वर ने जो दया का धनी है; अपने उस बड़े प्रेम के कारण, जिस से उस ने हम से प्रेम किया। जब हम अपराधों के कारण मरे हुए थे, तो हमें मासीह के साथ जिलाया; (अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है)।”(इफिसियों 2: 2-5 )।*
*परमेश्वर की इस योजना को “लेपालकपन की योजना” के रूप में जाना जा सकता है। एक बार फिर से देखिए कि याकूब क्या कहता है। ’हालांकि यह पोते मिस्त्र में उत्पन्न हुए हैं परंतु अब से यह मेरे कहलाएंगे। उन्हें मेरे पोते होने की आवश्यकता नहीं है वह मेरी संतान के रूप में रहेंगे। क्योंकि उन को गोद लेकर मैंने उन्हें पोतों के स्थान से मेरी अपनी संतान बना दिया है।’*
*इसका क्या मतलब है? इसके बाद, जब एप्रैम और मनाश्शे याकूब से मिलें , तो उन्हें उसे ‘पिता’ कहकर पुकारना पड़ेगा। हाँ। यह वही चीज़ है जो यीशु मसीह ने आपके लिए रखी है। उसे उन बच्चों की आवश्यकता है जो लेपालकपन की आत्मा के द्वारा उसे ‘अब्बा, पिता’ कहकर पुकारे, उनकी तरह नहीं जो मिस्र की गुलामी में रह रहे हैं। मसीह के साथ संयुक्त वारिस के नाम की जरूरत है।*
*परमेश्वर के प्यारे बच्चों, क्या यह एक बड़ी आशीष नहीं है कि उसने हमें ऊंचा उठाया ताकि हम उसके परिवार के सदस्य के रूप में रहें,और उसे ‘अब्बा, पिता’ कहकर पुकारने का अधिकार दिया है?*
*ध्यान करने के लिए: “क्योंकि तुम को दासत्व की आत्मा नहीं मिली, कि फिर भयभीत हो परंतु लेपालकपन की आत्मा मिली है, जिस से हम हे अब्बा, हे पिता कहकर पुकारते हैं।(रोमियों 8:15)।*
*आज की बाइबिल पढ़ने*
*सुबह – यशायाह : 14,15,16*
*संध्या – इफिसियों : 5:1-16*
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