परमेश्वर की सहायता से हम वीरता दिखाँएंगे।” (भजन संहिता ६०:१२)*
उद्धार पाने के पूर्व हमारा चित्त धन, जायदाद या मीरास पाने में लगा हुआ था; परन्तु परमेश्वर के बालक होने के नाते हमारा चित्त स्वर्गीय चीजों पर लगा होना चाहिये (कुलुस्सियों ३: १)। उसके बाद इसी अध्याय के ९-१० पदो में पौलूस लिखता हैं कि ‘तुमने पुराने मनुष्यत्व को उसके कामों समेत उत्तार डाला है। और नए मनुष्यत्व को पहिन लिया है जो अपने सृजनहार के स्वरुप के अनुसार ज्ञान प्राप्त करने के लिए नया बनता जाता है।’
यरदन नदी को पार करने के द्वारा भी यह सूचित किया गया है कि इस्राएलियों ने पुराने मनुष्यत्व को उतार डाला और बिलकुल नये जीवन में वे प्रवेश कर रहे थे। हम भी इसी रीति से विश्वास से कहते हैं कि प्रभु यीशु ने हमारे पुराने मनुष्यत्व को उसके पापी स्वभाव सहित उतार डाला है। और विश्वास से मसीह के पुनरूत्थान में जो जीवन की नवीनता प्रगट हुई उसका भी दावा करते हैं।
जिस रीति से हमारे दैनिक कामकाज के लिए शारीरिक शक्ति प्राप्त करने हेतु हमको भोजन की जरूरत है उसी रीति से अलग अलग आत्मिक जिम्मेदारियों को अदा करने के लिए और अनेक प्रकार की परीक्षाओं पर जय प्राप्त करने के लिए हमको प्रभु यीशु मसीह के जीवन की जरूरत है। यदि हम उचित रीति से भोजन न लें तो हमारा शरीर हमें साथ नहीं दे सकता। और एक ही साथ भोजन लेकर लम्बे समय तक शक्ति प्राप्त कर लेना यह भी सम्भव नहीं। हमारे शरीर की रचना ही ऐसी हैं कि दिन में दो से तीन वक्त भोजन करना पड़ता है। आत्मिक रीति से भी शक्ति प्राप्त करने के लिए विश्वासपूर्वक प्रभु यीशु मसीह के जीवन को अपनाना जरूरी है। रोज व रोज हम उससे कह सकते हैं, ‘प्रभु, आपका जीवन यह मेरा जीवन है। आज के दिन भर की जिम्मेदारीयों और कार्यों के लिए आपके जीवन की मुझे जरूरत है।’ इस रीति से हम बलवन्त होते हैं और हमारी निर्बलताओं पर जय प्राप्त कर सकते हैं। नहीं तो हम अवश्य ही निष्फल होंगे और निर्बल ही रहेंगे।