वे बल पर बल पाते जाते हैं, उनमें में से हर एक जन सिय्योन में परमेश्वर को अपना मुँह दिखाएगा।” (भजन संहिता ८४: ७)*
प्रभु यीशु जब पुनरूत्थित हुआ तब उसके कफन के कपड़े कब्र में ही रहने दिये; पर लाज़र कफन के साथ बाहर आया। (यूहन्ना ११:४४) इसके पीछे एक खास उद्देश्य था। प्रभु ने चाहा होता, तो वह कफन के बिना उसे बाहर लाया होता। परन्तु उसके बाहर आने के बाद प्रभु ने कहा, ‘उसके बंधन खोल दो और उसे जाने दो।’ दूसरे लोगों की मदद की उसे जरूरत थी। हम सबको संगति की जरूरत है। संगति के बिना हमको नहीं चलेगा। अधिकाँश विश्वासी लोग संगति के अभाव के कारण आत्मिक रीति से निर्बल रहते हैं। प्रभु के साथ उन्हें थोड़ा बहुत अनुभव तो रहता है परन्तु विश्वासियों के साथ संगति रखना उन्हें पसन्द नहीं है। वे घर रहते हैं। कितने लोग तो किताबें पढ़ते हैं और कहते हैं; किस लिए वहाँ जाकर समय बर्बाद करें’। इस रीति से वे संगति को हल्की बात मानते हैं। पूर्ण वृद्धि के लिए हमको संगति की आवश्यकता है, जैसे लाज़र के कफनमुक्त होने के लिए अन्य चेलों की जरूरत थी वैसे।
हम देखते हैं कि प्रार्थना, आराधना और गवाही एक साथ जाते हैं। हम अकेले प्रार्थना करें तो पूरा दिन प्रार्थना करने के बावजूद हरेक विषय के लिए प्रार्थना कर नहीं सकते। दूसरे विश्वासियों के साथ प्रार्थना करते हैं तब अनेक विषयों के लिए प्रार्थना करने की कुशादगी हमको मिलती है, और हमें अत्यंत आनन्द होता है। परमेश्वर के वचन के संबंध में भी यही सत्य है। घर रहते हैं तब परमेश्वर के वचन में से खास प्रकाश नहीं मिलता। परन्तु जब पवित्र शास्त्र के अभ्यास या अन्य सभाओं में जाते हैं तब बहुत प्रकाश मिलता है। सेवा के संबंध में भी साथ मिलकर वचन देने में आजादी मिलती है। हमारी हरेक आवश्यकता कसौटी और परीक्षाओं के लिए पुनरूत्थान के सामर्थ का अधिक सुखानुभव करने के लिए हम में से प्रत्येक को विश्वासीयों की तथा परमेश्वर के सेवकों की संगति की आवश्यकता है।
मूसा परमेश्वर का भक्त था, परमेश्वर के साथ आमने-सामने बात करता था, फिर भी वह निर्बल मनुष्य ही रहा। निगर्मन १७ में पढ़ते हैं कि उसे बैठने के लिए पत्थर की जरूरत पड़ गई और हारून तथा हूर ने उसके हाथों को टेका देकर उसे ऊँचा रखा। यह तो विश्वासीयों की संगति के द्वारा प्राप्त की गई कृपा और शक्ति का चित्र है। युद्ध में शक्तिशाली होने के लिए हमको अन्य विश्वासीयों की मदद एवं संगति की जरूरत है। नया जन्म प्राप्त करते हैं तब हम अलौकिक बन नहीं जाते। हमारी दृढ़ता और वृद्धि के लिए हमको विश्वासीयों को संगति के बिना नहीं चलेगा। परमेश्वर के लोगों की संगति और प्रार्थना सभा को तुच्छ समझना हमको भारी पड़ेगा।