यदि हम उसकी इच्छा के अनुसार कुछ माँगते हैं, तो वह हमारी सुनता है।” (१ यूहन्ना ५:१४)*

 

पहले जब हन्ना ने संतान के लिए प्रार्थना की तब उसकी प्रार्थना में स्वार्थ था। खुद की आवश्यकता की ओर तथा खुद के दुःख की ओर उसका ध्यान था। अलबत्त, वह निष्कपट होकर प्रार्थना करती थी लेकिन खुद का ही विचार करके वो स्वार्थी प्रार्थना करती थी। बाद में उसे यह समझ में आया कि परमेश्वर की भी जरूरत है, और यह जरूरत उसकी खुद की जरूरत से भी कइ ज्यादा है। तभी तो परमेश्वर के उद्देश्य में खुद भी हिस्सा प्राप्त कर सके इस हेतु से उसने अलग रीति से प्रार्थना की कि, ‘प्रभु, मुझे पुत्र दे, कि मैं उसे तुझे वापस दूँ।’ इस रीति से प्रार्थना करने के द्वारा परमेश्वर ने उसकी प्रार्थना सुनी और उसे पुत्र दिया जो उसके खुद के लिए ही नहीं, परंतु परमेश्वर के संकल्पों को पूरा करने के लिए और पूरे जगत के लिए आशिष का कारण बना।

 

कई बार हमारी प्रार्थना भी स्वार्थी होती है। हम अपने विषय में, अपने प्रियजनों के विषय में, अपने झुँड के विषय में ही विचार रखते हैं। इस रीति से हमारे अंधेपन और स्वार्थ के कारण से परमेश्वर को सीमित कर देते हैं। हम निष्कपट होने के बावजूद परमेश्वर के विचार को जान नहीं सकते और परमेश्वर के लोगों के मध्य आई हुई गिरी हुई हालत को समझ नहीं सकते। हन्ना के समान हम प्रार्थना कर नहीं सकते क्योंकि परमेश्वर के प्रगट किये हुए हेतु के लिए खुद को सम्पूर्ण रीति से सौंप देने के बदले हम स्वार्थी प्रार्थनायें करते हैं, जिसका उत्तर हमको मिलता नहीं। हमको यह जानना जरूरी है कि हम परमेश्वर के सहकर्मी हैं और परमेश्वर की इच्छा को जानकर उसकी आवश्यकता परखकर उसके उद्देश्य को पूरा करने में लग जाना चाहिये। हमारी योजनाओं और हमारे कार्यक्रमों पर परमेश्वर की आशीष माँगने के बदले हम परमेश्वर को पूरी रीति से उपलब्ध होना चाहिये; जिससे वह अपनी इच्छानुसार हमारा उपयोग करें।

By jesus

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